औरत, आदमी और छत , भाग 34
भाग,34
तभी स्कूल की पहली घंटी बज गई थी,सभी बच्चे ग्राउंड की तरफ चल पड़े थे। अध्यापक भी आ ग ए थे। डीपी साहब ने मिन्नी को बेटी के लिए मुबारकबाद दी थी। सभी अध्यापक अध्यापिकाओं ने भी मिन्नी को मुबारकबाद दी थी।प्रार्थना सभा में बकायदा बताया गया था की आज हम अपने स्कूल की पूर्व विद्यार्थी रीतिका को अपने यहाँ आमत्रित कर रहें हैं जिन्होंने हरियाणा सिविल सर्विसेज में न केवल पाँचवा रेकं लिया है,बल्कि वो अभी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के लिए भी जी जान से जुटी है।
मिन्नी की आँखें भर आई थी,पता नहीं क्यों, वो प्रिसिंपल मैम से माफी माँग कर स्टाफरूम में आ ग ई थी। कक्षाएँ शुरू.हो ग ई थी। बारह बजे का समय था जब रीति प्रेस के सासने अपने जूनियर्स से बाते करने वाली थी। मिन्नी को लग रहा था आज बारह कुछ देरी से बज रहे हैं।हर रोज की तरह समय से नहीं बज रहे।
बारह भी बज ग ए थे । रीति को सीधा डायरेक्टर मैम के रूम में ले ग ए थे। ज,हाँ पहले से ही प्रेस के लोग थे। मिन्नी को भी मैम ने वहाँ बुलवाया था। मैडम ने कहा था रीति तुम्हारी मेहनत और संघर्ष के सम्मान में गर मैं कुसी से खड़ी होकर भी तुम्हें सैल्यूट करू तो शायद कम होगा।रीतिका ने भरी आँखों से मैम के पैर छुकर उन्हें कुर्सी पर बैठाया था।
मिन्नी को प्रेस वालो ने कुछ बोलने को कहा तो बस भरी आँखों से उन्होंने हाथ जोड़ दिए थे।
आपकी सफलता में सबसे ज्यादा किस क योगदान रहा?
देखिए साहब मेरी मंमा हर पल मेरे लिए खड़ी रही पर एक शख्सियत और भी है जिन्होंने मुझसे भी ज्यादा जाग कर मुझे जागरूक किया और वो हैं मेरी कृष्णा नानी। नानी के साथ रीति का फोटो खीचने पर नानी की बूढ़ी आँखे भर आई थी। अपने जूनियर्स के साथ अपने टिप्स भी शेयर किए रीति ने। प्रेस जा चुकी थी,हास्टल की मैस में सारे बच्चे लंच कर रहे थे। तभी किसी ने आकर कहा कि मृणाली मैडम ग्राउंड में बेहोश पड़ी है।
रीति और डिंकी फटाफट भागे थे।प्रबंधन ने तुरंत ऐबूंलेस बुलवा कर मैडिकल भिजवाया था।मिन्नी को एडमिट कर लिया था। डिंकी ने अपने पापा को फोन किया था,पापा परसों जब मंमी की तबीयत खराब हुई तो उन्हें क्या हुआ था?
वो बेहोश हो ग ई थी,क्या बात है डिंकी, कहा हो तुम,और क्यों पूछ रही हो ये सब?
मंमी के पास मेडिकल में हूँ, मंमी अचानक स्कूल में बेहोश हो गई थी,तो हम मेडिकल ले आये हैं।
वीरेंद्र मैडिकल पहुंच कर डिंकी को फोन करके जगहं पूछता है,तो वो एमरजेंसी बताती है।वहाँ पहुंच ने पर उसने देखा दोनो लड़कियां परेशान सी खड़ी है।
माँ कहाँ है तुम्हारी?
एम आर आई के लिए ले ग ए हैं। नानी और डुग्गु साथ में है।
डाक्टर क्या बोलते हैं?।
अभी टेस्ट चल रहें है। मंमी बेहोश हैं।
डिकीं रोने लगी तो रीति ने उसे अपने गले लगा लिया था। ऐसे मत करो डिंकी मंमी जल्दी ठीक हो जायेंगी।
पापा आपने कहा कि मंमी कल दो बार बेहोश हुई तो आप उन्हें यहाँ क्यों नहीं लेकर आये?और सुबह वो अपनी डयूटी पर भी पहुंच ग ई।
तभी वार्ड बॉय के साथ स्ट्रेचर पकड़े डुग्गु भी आ गया।
आँखों में ही अपने पापा का अभिवादन करके माँ को बैड पर लिटाता है बहनों की मदद से।कृष्णा आन्टी भी पीछे पीछे आ चुकी थी।
सारे टेस्ट नार्मल हैं,बस एम आर आई की रिपोर्ट आनी बाकी है।
वीरेंद्र को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे, डुग्गु अपनी मंमा का सिर सहला रहा था। डिंकीबीच बीच में ठंडे पानी की पट्टी रख रही थी। रीति पैरों पर हल्के हल्के मसाज कर रही थी ।कृष्णा आन्टी बार मिन्नी का चेहरा देख रही थी।.
तभी रीति के फोन पर शायद स्कूल से ही फोन आया था।
नो मैम सार टेस्ट हो चुके हैं सभी बिल्कुल ठीक है,बस एम आर आई की रिपोर्ट अभी आना बाकी है।
जी बताती हूँ मैम।
तभी डिंकी जोर से बोली थी, मंमी।
सब की नजरें उधर ही घूम गई थी। मिन्नी को शायद होश आ गया था।
मंमी , डुग्गु उसके सिर पर हाथ टिकाकर रोने लगा था।नर्स के बुलाने पर डाक्टर भीआ ग ए थे। वीरेंद्र ने डुग्गु को अलग करना चाहा तो वो रोते हुए बोला मंमी है मेरी वो।
तो एक बार डाक्टर साहब को चैक तो कर लेने दो।
डाक्टर ने सारी रिपोर्ट चैक करके सब नार्मल बताया व मनोरोग विभाग के लिए रेफर कर दिया। वहाँ मिन्नी को पाँच दिन की दवाई दी व बिल्कुल आराम के लिए बोला।उन्होंने वीरेंद्र को भी बुलाया था अंदर।
मिन्नी को छुट्टी मिल गई थी। मिन्नी ने डुगू को केब बुलाने के लिए कहा तो वीरेंद्र बोला गाड़ी लाया हूँ मैं तो कैब की क्या जरूरतहै?
रीति मैडिकल स्टोर से दवाई लेआई थी।
घर पहुंच ते पहुंचते शाम गहरा गई थी। मिन्नी गाड़ी से उतर कर सीधा बच्चों के कमरे में ही चली गई थी।
मंमी मैने गीजर आन किया है आप थोड़ा नहाकर चेंज कर लो,और दरवाजा बंद मत करना, मैं यहीं हूँ।
मैं बाद में नहा लूंगी डिंकी।
नहीं मंमी अभी नहाले आप, मेडिकल से आयें है ।
रीति ने नहा लिया था,और वो रसोई में चली ग ई थी। मिन्नी भी बाथरूम में चली गई थी।
डुग्गु, जरा दूध का पेकिट ले आ भाई, रसोई मेंदूध नह़ी.है।
मिन्नी ने नहा कर कपड़े बदल लिए थे।वो बच्चों के कमरे में ही लेट गई थी। वीरेंद्र वहीं आ गया था उसके पास।
रीति दोनों को चाय और बिस्किट दे ग ई थी।
कमला को फोन कर लो बेटा, वो आ जायेगी, तुम लोग क्यों परेशान हो रखे हो।
जी अंकल।
खामोशी की चद्दर सहेजे मिन्नी लेटी थी।
चाय पी ले उठ कर वरना ठंडी हो जायेगी। चाय का सिप लेते हुए वीरेंद्र ने कहा था।
चुपचाप कप उठाया ही था कि डिंकी पानी लिए आ ग ई थी।
मंमा चाय शुरू तो नहीं की है न अभी?
नहीं।
ये लो पहले दवा खाओ।
दो गोलियां खिलाकर और गिलास लेकर वो बाहर चली गई थी।
मिन्नी अपने दिमाग पे कोई भी बोझ रखा हो तो उतार देना।मैं आईन्दा तुझसे बिना पूछे बाहर भी नहीं जाऊँगा। मेरी आखरी गलती माफ कर दे तेरा दिल बहुत बड़ा है। मैं तुझे इस हालत में नहीं देख सकता।
तभी डुग्गु अंदर आया था उसके बाल गीले थे। मंमी," देखना डिंकी को गीजर भी नहीं चलाया, मुझे ठंडे पानी से नहाना पड़ा। बात नहीं करूंगा अब मोटी से"।
मिन्नी ने मुसकर कर उसके गीले बालों को पास में ही रखे एक छोटे टावल से पोंछा था। तभी डिंकी आई थी।
ले डुग्गु दूध पीले।
रहने दे मोटी झूठी, पहले बोली भाई, अंदर गर्म पानी की बाल्टी भरी हैं, गीज़र भी आन है।
सारी भाई ,अच्छा ले दूध पी देख दीदी ने बोर्नवीटा मिला कर दिया है।
डिंकी कमला को फोन कर ले वो आ जायेगी, आन्टी भी परेशान होंगी सुबह से,वीरेंद्र बोला था।
पापा सब है गया है, अब तो कमला आन्टी सुबह ही आ जायेंगी।
दादी कितने दिन के लिए गाँव गई है।
वो वहाँ सफाई वगैरह करवा रही हैं,बुआ को अपनी बेटी की शादी के लिए वहीं आकर सब को आमत्रित करने का मन था।
ओके।
मिन्नी लेटे लेटे सो ही गई थी।ये दवाओं का ही असर था।
वीरेंद्र उठ कर बाहर आ गया था।डिंकी भी उसके पीछे आ गई थी। डुगू मंमा के बराबर वाली चारपाई पर लेट गया था।
पापा
हाँ बोल बेटा,
वीरेंद्र जो आकर बैड पर लेट गया था उठ कर बैठ गया था।
पापा मैं मंमी को यहाँ अकेले नहीं छोड़ सकती,इसलिए मैंने सोचा है कि हम उन्हें अपने साथ दिल्ली ले जाये । दिन भर नानी रहेंगी उन के पास। बीच बीच में हम लोग भी आते रहेंगे। दीदी का तो अभी टेस्ट सीरीज ही चल रहा है। मंमी को अभी बहुत केयर की जरूरत है, खासकर भावानात्मक केयर की।
तो तुम्हारा ये मानना है कि यहाँ उसे कोई केयर नहीं मिलेगा
।
बिल्कुल पापा दादी बजुर्ग हैं,उन्हें खुद केयर की जरूरत है,और रही आप की बात तो आप के पास तो कभी समय होता ही नहीं, खासकर मेरी मंमा के लिए।
उलाहने दे रही हो डिंकी
सॉरी पापा, हकीकत बता रही हूँ, और वो भी इस लिए कि मंमा को इस हालत में मैं यहाँ अकेले नहीं छोड़ूगी। आज मेरे जूनियरस बता रहे थे कि मृणाली मैडम बहुत जल्दी सुबह स्कूल आ गई थी और पीछे वाले पार्क में अकेली बैठी थी। मंमी इतनी सुबह ग ई आपने और दादी ने एक बार भी ये नहीं सोचा कि कल ये औरत सारा दिन बेहोश होती रही है, रास्ते में भी कहीं गिर कर बेहोश हो ग ई तो?
सॉरी बेटा,पर तेरी मंमी बोली मुझे कुछ काम है।
आप सब समझते हैं पापा, म़ै जानती हूँ कोई ऐसी सिचुएशन थी जिस के लिए मंमी इतनी सुबह यहाँ से पीछा छुड़ाना चाहती थी।मैं वो सिचुएशन नहीं पूछूंगी आप से, पर दोबारा ऐसी सिचुएशन पैदा हो ऐसा मौका भी नहीं दूंगी।
पागल हो गई है क्या डिंकी, तेरी माँ है तो मेरी भी बीवी है वो। उसे कुछ हो गया तो मेरा कौन हैं यहाँ।
डिंकी डिंकी
जी दीदी।
इधर आ पहले मंमा को खाना खिला देते हैं ताकि फिर वो आराम से सो जायें। डाक्टर साहब के हिसाब से जितना इनका दिमाग फ्रेश रहेगा, उतना ये जल्द रिकवर करेंगी।
आँखें पोछती डिंकी रसोई में चली गई थी। दोनों बहने खाना लेकर माँ के पास आई थी। डुग्गू सोया पड़ा था। मिन्नी सामने छत पर खुली आँखों से न जाने क्या खोज रही थी।
मंमा क्या हुआ?
.कुछ नहीं रीति।
तुम लोग सुबह जल्द निकल जाना बेटा नहीं तो तैयारी म़े नुकसान होगा।
क्या बात करती हो मंमी तैयारी आप से बढ़कर है क्या?
और सुनो मंमा मैं तो आपको अपने साथ लेकर जाँऊगी या फिर मैं यहीं रहूंगी ,मैं आपको अकेले नहीं छोड़ूगी इस हालत में।
मैं जल्द ठीक हो जाँऊगी डिंकी, रीति तुम लोग अपने भविष्य पर ध्यान दो। जरूरत पड़ी तो मैं स्कूल क्वाटर्स में ही शिफ्ट हो जाऊँगी। रोज के आने जाने से छुट्टी मिलेगी। वहाँ कोई दिक्कत हुई तो स्टाफ है ही।
तो अब हम आपको अजनबियों के सहारे छोड़ दें, क्योंकि अब आप बीमार हैं।
मैं शुरू से ही अकेली रही हूँ डिंकी, मुझे कभी परेशानी नहीं हुई।
मंमी आप कैसी बातें कर रही हैं, क्यों शिफ्ट होना है आपको क्या हुआ है आपको?
आप शिफ्ट होंगी तो अंकल क्या अकेले रहेंगे और डिंकी तुम मंमी को दिल्ली क्यों लेकर चलोगी, मंमा का जॉब हैं यहाँ, दादी हैं,अंकल हैं। सब मंमा के बिना अकेले कैसे रहेंगे,और फिर तुम लोग तो यहाँ आते जाते रहते हो। और सुन डिंकी मंमी को ऐसी कोई बीमारी नहीं है,सप्ताह भर आराम कर के दवाई फालो करेगी तो बिल्कुल ठीक हो जायेगी।
वीरेंद्र ने दरवाजे पर खड़े खड़े रीति की सारी बाते सुन ली थी। उसने रीति के सिर पर हाथ रखा।
रीति बेटा तुम अपनी मंमा को बोलो नौकरी छोड़ दे, घर पर रहे और आराम करे।
मिन्नी बस खामोश थी।
अंकल आप बैठें आप का भी खाना लगाती हूँ, और डिकीं इधर आ मंमी का भी खाना ठंडा हो गया है, वापिस उठा ले।
नहीं रहने दो डिकीं मैं इसे ही खा लूंगी।
अच्छा मैं अंकल का खाना ले आती हूँ।
डुग्गू खड़ा हो, रोटी खाले, वीरेंद्र ने बेटे को उठाया था।
मुझे भूख नहीं है पापा सोने दो।
डुग्गू उठ थोड़ी खा ले बेटा,फिर सो जाना।
मंमी , डुग्गु अपनी मंमी के साथ ही खाने लगा था। डिंकी अपने पापा का खाना ले आई थी।
तूं मंमी को खाने दें।
तेरे को क्या समस्या है ?
खाने दे डिंकी,मत तंग कर उसे।
पापा आप शुरु करें।
मंमी आप भी खालो।
हम्म खा लूंगी।
खाने के बाद डुग्गू बाहर चला गया था।वीरेंद्र ने मिन्नी की और देख कर कहा था, "सुन रही है मेरी बात छोड़ दे नौकरी"
मिन्नी की आँखें वीरेंद्र के चेहरे पर जैसे ठहर गई थी।
पता नहीं क्या था उन आँखों मे वीरेंद्र निगाहें फेर गया था।
चुपचाप उठ कर बैडरूम में चला गया था।
छह बजे ही खटरपटर से वीरेंद्र की आँख खुली थी, यानि मिन्नी ठीक हो ग ई थी। वो बाहर निकला तो डिंकी और रीति घर की टाईल्स साफ कर रही थी।
बेटा क्या कर रही है,कमला आ़टी कर लेगीं।
गुड मार्निंग अंकल , गुड मार्निग पापा।
मार्निंग बेटा। मंमी सो रही हैं तुम्हारी? रात को ठीक से सो पाई वो।
जी सो रही है अंकल, चाय बना दें आपके लिए?
बना दो बेटा, रसोई में कौन है?
नानी हैं अंकल खाना बना रही हैं।
अरे तो कमला तो आती ही है, बेटी सुबह वो बना लेती आकर।
हम लोग भी निकलेगे न अंकल, डिंकी का क्लास है ग्यारह
बजे।
तो तुम तैयार होजाओ बेटा, डिकीं कमला को फोन करलो बेटा।
बस काम ही हो गया है पापा, सफाई हो गई है, खाना बन ही चुका है, सवा आठ की बस है।
डुग्गु कहाँ है उठा नहीं है।
उठ गया है पापा वो रनिंग के लिए गया है।
तभी रीति एक गिलास में पानी और चाय ले आई थी।
वीरेंद्र उसे थैंक्यू बोल कर चाय लेकर अंदर आ गया था।
कमला भी आ ग ई थी।
डिंकी मुझे फोन कर लेती बेटा मैं जल्दी आ जाती।तुम लोग क्यों परेशान हो रखे हो।
हो गया आन्टी, अब आप मंमी का ध्यान रखना, हमारे पीछे से उन की तबियत ठीक नहीं है।
क्या हुआ है दीदी को? कहाँ है वो?
अभी तो सो रही है मंमी, आन्टी रसोई में नानी हैं, आप प्लीज हमारा खाना पैक करवा दें, तब तक हम नहा लेते हैं।
जी बेटा।
कमला ने खाना पैक करवाने में कृष्णा आन्टी की मदद की थी। बच्चे नहा कर तैयार हो ग ए थे। सात बज कर बीस मिनिट है ग ए, बस में लगभग घंटे भर का समय था। मिन्नी की नींद खुली तो उसे जैसे सब अजनबी सा लगा, चंद क्षण के बाद जैसे उसे होश सा आया मानो वह एक लंबी नींद से जागी हो। वो उठकर बाहर आई तो जैसे सब कुछ धुला धुला सा साफ लग रहा था।
तभी डुगू ने देखा मंमी उठ गई हैं।डिकीं, दीदी मंमा उठ ग ई हैं।
मंमा अब कैसा फील हो रहा है?
ठीक हूँ बेटा तुम तैयार है ग ए, कमला आई क्या? खाना बनवाया।
सब तैयार है मंमा, आप हाथ मुँह धो ले मैं चाय बनाती हूँ.।
मिन्नी ब्रश करके बाहर आई तो रीति ने चाय बना ली थी। पानी के साथ दवाई दी तो मिन्नी बोली ,सुबह सुबह दवाई?
कुछ दिन आपको ये सब लेना पड़ेगा मंमा।ठीक भी तो होना हे।
तुम लोगों ने नाशते में क्या लिया है?
अभी लेंगे मंमा।
डुगू मेरा पर्स लेकर आ।जा काजू पिन्नी ले आ।दध के साथ खा लो।
कमला बच्चों के लिए दूध गर्म कर दो।
कृष्णा आंटी ने मिन्नी को कुछ दिन की छुट्टी लेने के लिए समझाया था। मैने तुम्हारे लिए आलू मेथी की सब्जी और कढ़ी बनाई है, जरूर खा लेना। दवाई समय पर लेना बेटी।
शरीर बहुत जरुरी होता है।
जी आंटी।
तभी बाहर गाड़ी रूकी थी, वीरेंद्र काफी सारी सब्जी और फल लेकर आया था।
डुगू गाड़ी से सामान उतरवा लाया था।
पापा प्लीज़ मंमी का ख्याल रखना,और मंमी अब आप बीमार हुई तो मैं माईग्रेशन करवा कर यहीं आ जाऊँगी।
तुम लोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो , मैं बिल्कुल ठीक हूँ।
कमला ये सारे सेब बच्चों के बेग में डाल दो।
जी दीदी।
तुम लोग गाड़ी में बैठो, मैं तुम लोग को बस स्टेन्ड छोड़ देता हूँ।
रीति ने माँ को गले लगाया था, मंमा प्लीज़ कमजोर मत पड़ो, वो उसके कान मे फुसफुसाई थी।
डुग्गू और डिंकी सामान रख कर उसे प्यार करके गाड़ी में बैठ ग ए थे।
बच्चे चले ग ए मिन्नी फिर अकेली रह गई थी।वो अखबार देख ही रही थी तभी उसके फोन की घंटी बजी थी। माँ का फोन था।
नमस्ते माँ।
बता नहीं सकती थी कि तबियत ठीक नहीं हुई मेडिकल तक जाना पड़ा।
तब बताने की हालत में नहीं थी माँ अब ठीक हूँ। आप कैसी हैं? वहाँ काम हो रहा है क्या?
मैं रास्ते में हूँ शिवजीत के साथ घर आ रही हूँ।
जी माँ।
कमला आज तो बहुत चमका दिया तूने। सारा आँगन और टाइल्स चमक रही हैं।
अरे दीदी ये सब तो रीति और डिंकी का कमाल है, मेरे आने तक तो सब है चुका था।
अच्छा, मिन्नी मुस्कराई थी।
चलो माँ आ जाती है , फिर मैं नहा कर दीया जला लेती हूँ।
जी दीदी।
रीति और डिंकी बोल कर गई है कि आप जब तक नहाएं मैं बाथरूम के बाहर रहूं, और अंदर से दरवाजा बंद नहीं करना।
ठीक है भ ई ठीक है।
तभी गाड़ी की आवाज़ हुई थी और माँ अंदर आ गई थी।
शिव जीत अंदर आ जा बेटा।
नहीं चाची शाम को आँऊगा ,वीरू भी तो नहीं है।
मिन्नी ने माँ के पैर छुए थे।
एक ही दिन में कैसी हो गई है मिन्नी?
अभी ठीक हो जाऊँगी माँ।
माँ चाय पियोगे या ? नाशता?
अरे चाय तो दो बार पी चूकी हूँ, वीरू बच्चों को छोड़ के आने वाला होगा, फिर देखते ह़ै।
मैं नहा लेती हूँ, माँ फिर दीया जला देती हूँ।
नहा ले बेटी।
दीदी दरवाजा बंद मत करना।
अरे नहीं करूंगी।
गाड़ी रूकी थी वीरू अंदर आया था, माँ वो माँ के पैरों की तरफ झुका था।
देख क्या हालत बन गई है बहू की दो ही दिन में।
ठीक हो जायेगा माँ सब उस के आगे किसी बात का जिक्र मत करना, डाक्टर ने बहुत एहितयात बरतने को कहा है।
कहाँ है मिन्नी?
नहा रही है, वीरू जल्दी से अंदर आ गया था।
मिन्नी मिन्नी
नहा रही हूँ।
दरवाजा बंद क्यों कर रखा है?
आ रही हूँ, दो मिनिट में।
मिन्नी नहाकर निकली तो वीरेंद्र बाहर ही खड़ा था।
इंतजार नहीं कर सकती थी , दो मिनिट बच्चों को छोड़ कर आ नहीं रहा था क्या?
मिन्नी मंदिर की तरफ चली गई थी,। वो दीया जलाकर आई तो वीरेंद्र बोला चाय बना दे।
वो चाय बनाने रसोई में ग ई ही थी कि वो उसके पीछे रसोई में ही चला गया।
मिन्नी ने एक प्लेट में दो पिन्नी और एक चाय माँ के लिए रख दी थी। वीरेंद्र को चाय और एक गिलास पानी दिया था।
अपने लिए आधा कप चाय और आधी पिन्नी ले ली थी उसने। वीरेंद्र ने माँ की चाय और पिन्नी उठा ली थी।
चल , मैं उठा लूंगां।
अब जब मैं काम में मदद की कोशिश कर रहा हूँ तो मैडम के नखरे, वरना कहेंगी इनको तो किचेन का रास्ता ही पता नहीं है।
माँ को चाय देकर वो दोनों वहीं बैठ ग ए थे।
क्या रहा माँ दीदी का कब का प्रोग्राम है?
अरे वो तो तीन चार दिन में ही आने को बोल रही थी, फिर आज जब तेरी तबियत का सुना तो बोली थोड़ा रूक कर आऊँगी, पहले मिन्नी ठीक हो जाये। वैसे वो शायद आज कल में आ ही जाये, तुझे देखने।
आप भी न माँ ,उनको बताने की जरूरत क्या थी। मैं ठीक हूँ अब।
तभी रूपा दीदी का फोन आया था वीरेंद्र के मोबाइल पर।
मिन्नी से बात करा तो वीरू उसका नम्बर आफ आ रहा है।
वीरेंद्र ने उसको फोन देदिया और बोला मोबाइल कहाँ है तेरा।
अंदर है बच्चों के कमरे में।
नमस्ते दीदी।
बीमार पड़ी हो और दीदी को बताया भी नहीं, मैं शाम तक आ रही हूँ।
दीदी मैं ठीक हूँ, आप शादी का काम संभाले। अब तो आप भात के निमंत्रण का दिन बताओ, कब आ रही हैं?
मैं शाम को आ रही हूँ मिन्नी, मैं जब तक तुझे नहीं देखूंगी मैं काम ही नहीं कर पाऊँगी। वीरू से बात करा,
वीरू मैं शाम को आऊँगी तूं छह बजे बस स्टेन्ड आ जाना।
जी दीदी, मैं लेने ही आजाता हूँ आपको।
नहीं भाई तूं मिन्नी के पास रह।
आयेगी क्या रूपा?
हाँ माँ शाम को पहुंच जायेगी।
ठीक है।
माँ मैं थोड़ा लेट जाती हूँ मुझे पता नहीं क्यों नींद आ रही है।शायद दवाई का असर है।कमला आपके लिए रोटी सेक देगी।
ठीक है तूं आराम कर।
मिन्नी बच्चों के कमरे में जाकर लेट ग ई थी, वीरेंद्र नहा कर बाहर आया तो माँ से पूछा, मिन्नी कहाँ है माँ?
वो उधर लेटी हुई है,माँ ने इशारा किया था बच्चों के कमरे की तरफ।
वो.उधर ही चला गया था। कपड़े कहाँ हैं मेरे।
अलमारी में ही तो हैं।
जहाँ रोज मिलते हैं मुझे वहीं चाहिए कपड़े।और ये बच्चों के कमरे पर क्यों कब्जा जमा कर बैठी है,अपने कमरे में चल
।
मैं ठीक हूँ यहीं पर।
कपड़े दे चल कर।
आप अपने कपड़े नहीं ले सकते क्या।
एक मुद्दत हुई मुझे तो अपने कपड़ो की पहचान ही नहीं है, फिर कैसे लूं.?
बाहरी चीजों की तो बड़ी पहचान है आपको अपनी चीजों की भूल गए।
माफ कर दे बेगम उसी का नतीजा भुगत रहा हूँ।
अब मेरे पास.आपके लिए कुछ भी नहीं है, सब.खत्म हो गया हे।
खत्म को पैदा कर लूंगा मै।
मिन्नी लेटी ही रही थी।
यार कपड़े निकाल दे वरना ये ठ़ड मेंजो टावल में खड़ा हूं न इसका खमियाजा ले लूंगा तेरे से।
मिन्नी.उठ कर बैडरुम की तरफ चली गई थी, उसने अलमारी खोली ही थी कि वीरू ने दरवाजा बंद कर लिया था अंदर से।
ये क्या है?
कुछ भी नहीं, मिन्नी बस माफी के लिए एकांत ढूंढने की कोशिश है।
मैंने कहा न मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है आपके लिए।
ऐसा संभव ही नहीं है डियर।
वो बीता दिनों की बात थी वीरू सरपंच, आप ऐसे अतीत में जी रहे हैं,जिसका वर्तमान से कोई वास्ता नहीं है।
मिन्नी मैं पागल हो जाऊँगा मुझसे ये सब बर्दाश्त नहीं होगा।
पागल क्यों होगें, गाँव या कहीं भी जायें और अपनी जिंदगी को अपनी मर्जी के मुताबिक़ जियें। मेरी तरफ़ से कोई समस्या नहीं आयेगी । हाँ मेरा आपका हर वास्ता खत्म।
यार गलती हो गई मिन्नी। खुदा कसम आज के बाद,
बस बस खुदा को बीच में मत लायें, और कितनी बार गलती, गलती आप से नहीं मुझसे हुई।ये बच्चे होने से पहले ही मुझे आपके रंग ढंग दिख ग ए थे तो क्यों न मैं ही अलग हो गई थी।हम औरतें बहुत बेवकूफ होती हैं जनाब एक उम्मीद के लिए तमाम उम्र लुटा देती है और अंत में हाथ क्या लगता है तन्हाई और सिर्फ तन्हाई। ये कपड़े निकाल दिए हैं आपके, आपका हर काम आपको समय पर मिल जायेगा। पर ये तबाह हुई औरत है न ये आपको कभी माफ नहीं करेगी।
मिन्नी दरवाजा खोल कर बाहर आ गई थी,वीरेंद्र वहीं खड़ा रहा था,बिल्कुल खामोश। आज पहली दफ़ह ऐसा हुआ था, जब उसने ये नहीं कहा था, तुम जानती हो डियर होना वही है जो मैं चाहता हूँ, फिर ये झिक झिक कर के मुझे क्यों गुस्सा दिलाती हो।
मिन्नी ने बिना पूछे ही जूस भिजवा दिया था कमला के हाथ,और कमला को कहा था , सब्जी बनी रखी हैं साहब के लिए रोटी बना दो टिफिन तैयार कर दूं टिफिन बेडरूम में जाकर खुद देकर आई थी।
तभी फोन की घंटी बजी थी, मंमा फोन क्यों आफ था आपका?
डुग्गू है सकता है बेटरी में कोई समस्या हो गई हो। मैं चेक करवा लूंगी। तुम लोग पहुंच ग ए?
हाँ आप डि़ंकी को मैसेज करके बतादो कि फोन में समस्या है, वरना मोटी क्लास नहीं लगा पायेगी। मैं दीदी और नानी घर पर ही हैं। मैं बस निकल रहा हूँ। मेरी भी क्लास है।
ठीक है ठीक है मैं मैसेज करती हूँ बच्चा।
मुझे दे दे फोन मैं चेक करवा लूंगा। माँ का फोन है ही घर में।
मैं करवा लूंगी कल जब स्कूल जाऊँगी।
तूने क्या समझ रखा है मेरे को,कोई.औकात नहीं है क्या मेरी, स्कूल जाना है न तेरे को, चल मैं अभी छोड़ कर आता हूँ,उसने हाथ खीचा था उसका।उसके जोर जोर से बोलने से माँ भी इधर आ गई थी।
क्या हुआ वीरू ,क्यों चिल्ला रहा है बहू पर
मैडम स्कूल जाना चाह रही है,क्योंकि मैडम की कमाई के बिना तो फांके पड़ जायेंगे । ज़िंदगी खराब कर रखी है।कुछ कह दो मैडम टसुए बहा देंगी और चुप्पी खीच लेंगी, दूसरा तो पागल है।
वीरू बंद करो ये भाषण बाजी।
बंद मैं तो निकल ही रहा हूँ यहाँ से, वो बिना टिफिन लिए गाड़ी लेकर निकल गया। मिन्नी जानती थी वो इतना ओवररियेक्ट क्यों कर रहा है ।
माँ आपने दवा ले ली अपनी।
हम्म।
मिन्नी ने रसोई में जाकर अपने लिए पानी लिया और दवा ले ली थी। फिलहाल ठीक होना उसके लिए बहुत जरुरी था।
दवा खाकर लेट गई थी वो। कमला पूछने आई थी, दीदी कोई काम तो है नहीं, मैं चली जाऊँ।
शाम को थोड़ा जल्दी आना कमला दीदी आयेंगी।
मैं आ जाऊँगी दीदी, आप आराम करें।
किताब पढ़ते पढ़ते सो ही गई थी ,तीन घंटे सोई रही थी।
वाकई दवा नींद की ही दी थी डाक्टर ने,उस तो दिन में आधा घंटा भी नींद नहीं आती थी। रात को भी कितने तनाव में सोती थी। हरेक घंटे बाद आँख खुल जाती थी ,फिर पता नहीं कितनी देर में नींद लगती,फिर सुबह की दिनचर्या के लिए उठना। शायद इसी उहापोह ने ही उसे बीमार बना दिया है।
उठ कर बाहर आई तो माँ बैठ कर पालक साफ कर रही थी।
आज तो बहुत सोई मिन्नी मैं तो डर ही गई थी।
माँ ये दवाई में नींद की दवा है न, इसलिए पता ही नहीं चला।
वीरू का फोन आया था तो मैंने बोला कि सो रही है काफी देर से। वो भी यही बोला कि नींद की दवा दी हुई है।
माँ चाय बनादूं?
मैं बना लाती हूँ मिन्नी।
माँ प्लीज़।
मिन्नी ने अपने और माँ दोनों के लिए बिना मीठे की चाय बनाई थी।
चाय में मीठा नहीं डाला मिन्नी?
आज सुबह से ये चौथी चाय है माँ और फिर मैं आपके लिए ये बिस्किट भी तो लाई हूँ।
ये भी तो मीठे फीके ही हैं बेटा।और मुझे कोई शुगर की बीमारी है क्या।
पर फिट तो रहना है न माँ लो पहले चाय पी लो आप।
शाम को तीनों बच्चों से बात की थी उसनें, डिंक़ी परेशान लग रही थी उसकी सेहत को लेकर।उसने उसे आशवस्त किया थाकि वो अपना अधिक ख्याल रखेगी।। अंदर जाकर टी वी आन किया था,आज बहुत अरसे बाद टी वी के लिए बैठी थी। तभी कमला आ गई थी, कैसी तबियत है दीदी?
हम्म ठीक हूँ कमला।
क्या बनाना है दीदी?
मटर रखें होगे देखो मैं आती हूँ किचेन मे।
सब्जी बता कर मिन्नी फिर टी वी के पास आ गई थी।तभी बाहर गाड़ी रूकी थी,वीरेंद्र और दीदी अंदर ग ए थे। माँ के साथ दीदी मिन्नी के पास पहुंच ग ई थी। कैसी है मिन्नी?
.नमस्ते दीदी ठीक हूँ बिलकुल ठीक।
बैठो दी मैं चाय लेकर आती हूँ।
अरे तुम बैठो मिन्नी कोई जरूरत नहीं हे, यहाँ से उठने की।
कमला चाय ले आई थी, दीदी ने चाय पीते हुए वीरू कहाँ रह गया पूछा था?
साहब ने चाय के लिए मना कर दिया था, दीदी वो शायद कपड़े बदल रहे हैं।
रात के खाने के बाद ये राय बनी की पहले शापिंग कर लेंगे दिल्ली चल के फिर बच्चों को भी साथ ले आयेंगे उस के बाद गाँव में प्रोग्राम हो जायेगा भात निमंत्रण का।
तुम भी तो कुछ बोलो मिन्नी?
ठीक है दीदी जो आप लोगों की राय है, वही बेहतर है।
मिन्नीने उठ कर अपनी दवा ली थी, सब को दूध दे दिया था,वो रात को दूध नहीं पीती थी। दिन मेंभी तीन घंटे सोई रही और अब फिर नींद दस्तक देने लगी थी आँखों पर। उसके चेहरे से नींद जैसा लग रहा था तो दीदी ने कहा था मिन्नी जा सो जा तूं थकी थकी सी लग रही है।
कोई नहीं दीदी आप लोग बाते करते रहें मैं यहीं सो जाऊँगी।
अरे नहीं तूं जा आराम कर यहाँ डिस्टर्ब होगी और नींद जरूरी है।
अरे दी
जा जा चली जा नहीं आऊँगा मैं उस कमरे में, मेरे से दिक्कत है न तेरे को।
वीरू क्यों बेचारी को तंग कर रहा है।
मिन्नी को शायद बात बढ़ाना उचित नहीं लगा था, वो चुपचाप उठ कर बैडरूम में चली ग ई थी। उसे लेटते ही नींद आ ग ई थी। पता ही नहीं चलता था उसे कदर बेहोशी की नीं द आई थी, सुबह के सात बज ग ए थे, उसे किसीने जगाया भी नहीं था। वो चुपचाप उठ कर बाथरूम चली गई थी, ब्रश करते हुए सोच रही थी, आज मेडिकल जाकर आऊँगी, इस तरह का कैसा इलाज है ये, मैं एक कामकाजी औरत हूँ इस कदर कैसे संभव होगा सब।
वो रसोई में ग ई तो कमला थी वहाँ पर, उठ गई दीदी।
हम्म।
माँ के कमरे से हँसने की आवाजें आ रही थी, शायद वहीं थे सब। मिन्नी अपने लिए चाय बना कर वापिस बैडरूम. मेंआ ग ई थी।उसे अजी़ब सी तन्हाई अपने गिर्द महसूस हो रही थी, शायद ये दवाओं का असर था, या अब वो बीमार हो ग ई है तो सब उससे दूर होनें लगे है। शायद ये मेरे मन का वहम हो।
वो चाय पीकर फिर लेट गई थी, तभी माँ इधर आई थी,
उठ गई मिन्नी तूं कमला बता रही थी।
जी उठ गई।
रूपा और वीरू तेरे जेठ के घर ग ए है,शादी की खबर भी दे देंगे, और आगे का प्रोग्राम भी बना लेंगे, खरीदारी वगैरह का
।
जी ठीक है माँ।
तबीयत ठीक है न अब तेरी।
जी।
पता नहीं क्या सोच कर वो नहा कर तैयार हो गई थी।अपनी दवाई की फ़ाइल और पर्स लेकर निकलने लगी तो माँ ने टोका था, कहाँ जा रही हो मिन्नी इतनी सुबह?
डाक्टर से टाईम लिया है माँ उन्हीं के पास जा रही हूँ।
वीरू के साथ चली जाना।
कोई नहीं माँ वो भी तो काम से ही ग ए हैं।
कहती वो बाहर निकल आई थी।पैदल चलते चलते वो सोच रही थी,इस पूरे शहर में कोई भी ऐसा नहीं जिसके पास जाकर वो दो घड़ी बैठ सके ,बात कर सके , स्कूल में कितनी टीचर्स आपस में बहुत अच्छी दोस्त है।खुद को इतना सीमित क्यों बना लिया उसने।
मुझे जाना कहाँ है , कोई रास्ता ही नहीं है। तभी मैडिकल की आवाज़ देता आटो धीमा हुआ था उसके पास।वो तुरंत उसमें बैठ गई थी। मेडिकल पहुंच कर उसने रिसेप्शन पर स्लिप कटवाई थी। कुछ देर इंतजार के बाद उसका नम्बर आ गया था अपनी पूरी फाइल के साथ वो डाक्टर से मिली थी।
डाक्टर ने उसे बहुत ही प्यार से समझाया था, ये बीमारी बस आपके दिमागी तनाव का हिस्सा है, गर आप तनाव खत्म कर लेंगी तो बहुत जल्द ठीक हो जायेंगी। दिमाग को आराम हम नींद से दे सकते है, गर आप को ज्यादा दिक्कत है तो ये गोली आधी कर लीजिए। बाकी सब वैसे ही लेना है कोई दिक्कत हो तो आप मेरा नम्बर भी ले सकती है। बस दवा को लेते रहें, कुछ दिन की छुट्टी ले ले आप ठीक होना भी तो बहुत जरूरी है।
शुक्रिया अदा करके मिन्नी बाहर आ ग ई थी।
मेडिकल कैन्टीन में बैठकर एक सेंडविच और एक काफी लेकर दवा ली थी उसने। मोबाइल भी चैक करवाया था।अब उसे नींद जैसा लगने लगा था। ग्यारह बज ग ए थे किसी को उसकी जरूरत नहीं थी। सोचते हुए उसने आटो पकड़ा था।घर पहुंच कर देखा माँ बैठी थी कमला भी काम कर के घर जा चुकी थी।
वीरेंद्र और दीदी शायद नहीं आये थे।उसने पूछा भी नहीं, बस ठीक हूँ कहकर अंदर जाकर सो ग ई थी,बच्चों. के कमरे में।
नींद के आगोश में ही शायद खुद को बदलने का वायदा खुद से ही कर रही थी। सपना था कि हकीकत थी उसे भान भी नहीं हुआ था दिमाग जैसे शांत पड़ा हुआ था।एक बजे उसकी आँख खुली तो वो उठकर बाहर गई थी। वीरेंद्र अपनी माँ के पास बैठा था। वो रसोई से पानी लेकर वापिस कमरें में ग ई त़ वीरेंद्र उसके पीछे ही आ गया था।
क हाँ गई थी?
डाक्टर के पास
क्या काम था, डाक्टर से, मैं मर गया था क्या।
आपके लिए तो मैं बहुत पहले से ही विकल्प के तौर पर प्रयोग करने वाला शरीर ही थी, अब वो वास्ता भी मैं आप से खत्म कर चुकी हूँ। तो.अपनी समस्या अपनी दवा दारू के लिए मैं किसी अजनबी की मदद क्यों लूं।
वीरेंद्र का हाथ उठा और झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा था,तो यहाँ क्या कर रही हो, जाओ जहाँ जाना है।
मिन्नी का सिर घूम गया था उसे ऐसे लगा जैसे वो ठीक से देख भी नहीं पा रही है। उसने.बिना कुछ बोले अपनी हिम्मत बटोरी और पर्स और दवाईयाँ उठाने की कोशिश की। तभी उसकी सास अंदर आ गई।
क्यू तमाशा बना रखा है तुम लोगों ने।
।
मिन्नी को बहुत अजी़ब लगा था, वीरेंद्र बिना कुछ बोले कमरे से बाहर चला गया था।
मैं चली जाँऊगी यहाँ से आजकल में फिर आपके घर का तमाशा खत्म हो जायेगा।
मैंने तुझे ऐसा कुछ नहीं कहा बहू।
भगवान से दुआ करूंगी माँ कि किसी के ऐसा कहने की नौबत ही न आये।
माँ वापिस मुड़ आयी थी, मिन्नी ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था। बहुत देर शून्य में ताकती रही थी,ऐसे में इंसान क्या सोच पाता है,शायद कुछ भी.नहीं, एक वितृष्णा सी थी दिलोदिमाग़.में। अचानक उसे कामकाजी महिला आवास.याद आया था,वो सोच रही थी अब तो सब नये लोग आ ग ए होंगे ,कोई नहीं जानता होगा उसे तो कोई अतीत के बारे में भी नहीं कुरेदेगा। उफ़्फ़ उसने अपना सिर पकड़ लिया था। बच्चों को क्या बताऊंगी, क्या करूँ, कहाँ चली.जाऊँ कोई रास्ता? हर बार मेरे ही रास्ते क्यों बंद हो जाते हैं।
उसने महिला आवास का नम्बर निकाला था,फोन.किया तो कोई बारीक सी आवाज़ थी। यानि सब बदल गया था।
उस बारीक आवाज़ वाली लड़की ने बताया था, मैडम कमरा हम दे देंगे, पर अगर आप कुछ दिन के लिए चाहती हैं तो सौ रूपये रोज गर आपको महीना या ज्यादा चाहिए तो दो हजार रूपये महीना। खाना हमारी मैस में भी बनता है और टिफिन सिस्टम भी है ,आप को जो भी ठीक लगे। बैड हम देंगे, बिस्तर आपका होगा।
जी बहुत शुक्रिया, मैं कुछदिन रोजाना पैमेंट करके रह लेती हूँ, फिर देख लेती हूँ।
जैसी आपकी मर्जी मैम।
चलो ठिकाने की तो दिक्कत मिटी, कुछ देर में उस कमरे में जाकर अपने कपड़े डाल लेती हूँ, तब तक वीरेंद्र भी कहीं निकल जायेंगे।
तभी डिंकी का फोन आया था उसके नम्बर पर।
कैसी हो मंमी?कुछ आराम हुआ?
मैं ठीक हो जाऊँगी डिंकी तूं बता, कैसे हो सब पढ़ाई?
मंमी आपकी आवाज़ से मुझे आप ठीक नहीं लगी,मैने सुबह पापा से बात की तो वो आपके बारे में नहीं बुआ की बेटी की शादी के बारे में ज्यादा बता रहे थे, शापिंग के लिए दिल्ली आयेंगे, लो ताई से बात करो ये वो।
कुछ नहीं डिंकी मेरे बीमार होने से किसी की ज़िंदगी थोड़ा ही रूक जायेगी। तुम शांत दिमाग से अपनी पढ़ाई करो। जो कि इस वक्त की जरूरत है बच्चे।कोई न कोई.मंकाम हासिल करना बहुत जरूरी है .बेटी।
मंमी एक बहुत ही निजी प्रश्न कर रही हूँ आपसे, आप तो नौकरी भी कर रही थी, फिर आपने मेरे ही पापा से शादी क्यों की।क्या पाया आपने इस शादी से , सारी उम्र का दर्द एक तड़प, एक टीस। क्यों नहीं आपने रीति दीदी के साथ ही ज़िंदगी बिताने की सोची? या फिर कोई और अच्छा पार्टनर चुनती।
तभी पीछे से आवाज़ आई थी, किस से बात कर ही है मोटी?
मंमी मैं आपको वापिस काल करूंगी, मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो प्लीज़ माफ कर देना।
क्रमशः
औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिताविम्मी।
भिवानी, हरियाणा